हरि हर वीर मल्लु: पार्ट 1 – स्वॉर्ड वर्सेज स्पिरिट एक ऐसी फिल्म है जो अपनी भव्यता और महत्वाकांक्षा के साथ दर्शकों को आकर्षित करने का वादा करती है, लेकिन कमजोर लेखन, असंगत दृश्य प्रभाव और कहानी के टुकड़ों में बिखरने के कारण यह अपने लक्ष्य को पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाती। पवन कल्याण की स्टार पावर और उनके प्रशंसकों की उत्साहपूर्ण उम्मीदों के बावजूद, यह फिल्म एक मिश्रित अनुभव प्रदान करती है। यह लेख इस फिल्म की गहराई से समीक्षा करता है, जिसमें इसकी कहानी, अभिनय, तकनीकी पहलू, और दर्शकों के लिए इसकी प्रासंगिकता शामिल है। यह लेख न केवल फिल्म के प्रशंसकों के लिए, बल्कि उन सभी के लिए है जो भारतीय सिनेमा में ऐतिहासिक और काल्पनिक मिश्रण की खोज करना चाहते हैं।हरि हर वीर मल्लु जब सपनो से बड़ी होती है जिद |
फिल्म का परिचय और पृष्ठभूमि
हरि हर वीर मल्लु: पार्ट 1 एक तेलुगु भाषा की पीरियड एक्शन-एडवेंचर फिल्म है, जिसका निर्देशन शुरू में कृष जगरलामुडी ने किया था, लेकिन बाद में इसे ए. एम. ज्योति कृष्णा ने पूरा किया। फिल्म की शूटिंग में पांच साल से अधिक का समय लगा, जिसका कारण कोविड-19 महामारी और पवन कल्याण की राजनीतिक प्रतिबद्धताएँ थीं, जो अब आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं। यह फिल्म 17वीं सदी के मुगल साम्राज्य की पृष्ठभूमि में सेट है और एक काल्पनिक डाकू वीर मल्लु की कहानी बताती है, जो कोहिनूर हीरे को चुराने की साहसिक मिशन पर निकलता है। फिल्म का टैगलाइन ‘बैटल फॉर धर्म’ इसके कथानक की थीम को दर्शाता है, जो धर्म और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष पर केंद्रित है।
फिल्म में पवन कल्याण मुख्य भूमिका में हैं, जबकि बॉबी देओल, निधि अग्रवाल, नरगिस फाखरी, नोरा फतेही, और सत्यराज जैसे अभिनेताओं ने सहायक भूमिकाएँ निभाई हैं। एम. एम. कीरावनी का संगीत और बेन लॉक जैसे अंतरराष्ट्रीय वीएफएक्स सुपरवाइजर की भागीदारी ने फिल्म की प्री-रिलीज चर्चा को और बढ़ाया। लेकिन क्या यह फिल्म अपनी अपेक्षाओं पर खरी उतरती है? आइए, इसकी गहराई में उतरते हैं।हरि हर वीर मल्लु जब सपनो से बड़ी होती है जिद |
कहानी का सार और थीम
फिल्म की कहानी 1650 ईस्वी में शुरू होती है, जब कोल्लुरु खदानों में मेहनतकश मजदूर कीमती रत्नों की खोज करते हैं, लेकिन उनकी जिंदगी भूख और शोषण से भरी है। यहाँ से वीर मल्लु (पवन कल्याण) की कहानी शुरू होती है, जो एक रॉबिन हुड-शैली का डाकू है, जो अमीरों से चुराकर गरीबों की मदद करता है। उसे कुतब शाही शासक द्वारा कोहिनूर हीरे को मुगल सम्राट औरंगजेब (बॉबी देओल) से चुराने का काम सौंपा जाता है। लेकिन वीर मल्लु का मिशन केवल चोरी तक सीमित नहीं है; यह हिंदुओं पर लगाए गए जजिया कर के खिलाफ एक विद्रोह और धर्म की रक्षा की लड़ाई है।
फिल्म का कथानक ऐतिहासिक तथ्यों और काल्पनिक तत्वों का मिश्रण है। यह एक तरफ औरंगजेब के शासन की क्रूरता को दर्शाता है, वहीं दूसरी तरफ वीर मल्लु को एक नायक के रूप में प्रस्तुत करता है, जो अपने लोगों के लिए लड़ता है। फिल्म में संनातन धर्म को बढ़ावा देने की कोशिश साफ दिखाई देती है, जो पवन कल्याण की राजनीतिक विचारधारा और उनके जन सेना पार्टी के सिद्धांतों से मेल खाती है। हालांकि, यह फिल्म धार्मिक ध्रुवीकरण से बचने की कोशिश करती है, क्योंकि वीर मल्लु के दो विश्वसनीय साथी मुस्लिम हैं, जो कहानी में सामंजस्य का संदेश देता है।
अभिनय: पवन कल्याण की स्टार पावर और बाकी कलाकार
पवन कल्याण इस फिल्म का केंद्रबिंदु हैं। उनकी स्क्रीन प्रेजेंस और करिश्मा निर्विवाद रूप से प्रभावशाली है। वीर मल्लु के किरदार में वे एक देसी सुपरहीरो की तरह नजर आते हैं, जो न केवल मुगलों से लड़ता है, बल्कि जंगली जानवरों से भी टक्कर लेता है। उनके मार्शल आर्ट्स बैकग्राउंड और स्टंट कोरियोग्राफी का अनुभव फिल्म के एक्शन दृश्यों में साफ झलकता है, खासकर 18 मिनट के प्री-क्लाइमेक्स सीक्वेंस में। लेकिन उनकी स्टार पावर के बावजूद, कमजोर लेखन और असंगत दृश्य प्रभाव उनके प्रदर्शन को पूरी तरह से चमकने से रोकते हैं।
निधि अग्रवाल, जो पंचमी की भूमिका में हैं, अपनी स्क्रीन प्रेजेंस से प्रभावित करती हैं। उनके किरदार में एक छोटा सा ट्विस्ट है, जो कहानी को थोड़ा रोमांचक बनाता है, लेकिन उनकी भूमिका को ज्यादा गहराई नहीं दी गई है। बॉबी देओल औरंगजेब के रूप में निराश करते हैं; उनका प्रदर्शन असंगत और उत्साहहीन लगता है। सत्यराज, नासर, और कबीर दuhan सिंह जैसे अनुभवी अभिनेताओं को सीमित स्क्रीन टाइम मिला है, जिसके कारण उनके किरदार अधूरे से लगते हैं। दिवंगत कोटा श्रीनिवास राव का छोटा सा रोल फिल्म में उनकी अंतिम उपस्थिति को भावनात्मक बनाता है।हरि हर वीर मल्लु जब सपनो से बड़ी होती है जिद |
तकनीकी पहलू: कहाँ चमकी और कहाँ फीकी पड़ी फिल्म
निर्देशन और लेखन
फिल्म का निर्देशन शुरू में कृष जगरलामुडी ने किया था, जिन्हें अपनी ऐतिहासिक और भावनात्मक कहानियों के लिए जाना जाता है। लेकिन बीच में निर्देशन की कमान ज्योति कृष्णा को सौंप दी गई, जिसका असर फिल्म की असंगत टोन और कहानी पर साफ दिखता है। पहले हाफ में कुछ दृश्य, जैसे चारमीनार के पास का एक्शन सीक्वेंस और प्री-इंटरवल हिस्सा, प्रभावशाली हैं और कृष की शैली को दर्शाते हैं। लेकिन दूसरे हाफ में कहानी बिखर जाती है, और ज्योति कृष्णा की दिशा में कमी साफ नजर आती है।
लेखन के मामले में, साई माधव बुर्रा के संवाद कभी-कभी प्रभावशाली हैं, लेकिन कई बार वे भारी-भरकम और असंगत लगते हैं। कहानी में टोनल असंगति एक बड़ी समस्या है; हास्य और गंभीरता का मिश्रण सही ढंग से नहीं हो पाता, जिसके कारण कई महत्वपूर्ण दृश्य अपना प्रभाव खो देते हैं।
संगीत और बैकग्राउंड स्कोर
एम. एम. कीरावनी का संगीत फिल्म का एक मजबूत पहलू है। उनका बैकग्राउंड स्कोर पहले हाफ में कहानी को गति देता है और कुछ एक्शन दृश्यों को ऊर्जावान बनाता है। हालांकि, गाने उतने प्रभावशाली नहीं हैं, जितने इस स्केल की फिल्म से अपेक्षा की जाती है। कुछ गीत कहानी को आगे बढ़ाने के बजाय रुकावट पैदा करते हैं।
सिनेमैटोग्राफी और वीएफएक्स
ग्नाना शेखर वी. एस. और मनोज परमहंसा की सिनेमैटोग्राफी पहले हाफ में प्रभावशाली है, खासकर उन दृश्यों में जो 17वीं सदी के माहौल को जीवंत करते हैं। लेकिन दूसरे हाफ में यह भी कमजोर पड़ जाती है। वीएफएक्स, जो बेन लॉक जैसे अनुभवी सुपरवाइजर की देखरेख में तैयार किए गए थे, निराशाजनक हैं। हिमस्खलन और टॉरनेडो जैसे दृश्यों में ग्राफिक्स बेहद कृत्रिम लगते हैं, जो दर्शकों का ध्यान भटकाते हैं। चारमीनार का सेट भी प्रामाणिक नहीं लगता, जिससे फिल्म का ऐतिहासिक माहौल कमजोर पड़ता है।हरि हर वीर मल्लु जब सपनो से बड़ी होती है जिद |
एक्शन कोरियोग्राफी
निक पॉवेल, राम-लक्ष्मण, और पीटर हेन जैसे कोरियोग्राफर्स ने फिल्म के एक्शन दृश्यों को शानदार बनाया है। कुश्ती का दृश्य और प्री-क्लाइमेक्स एक्शन सीक्वेंस फिल्म के कुछ सबसे मजबूत हिस्से हैं। पवन कल्याण की मार्शल आर्ट्स स्किल्स इन दृश्यों में चमकती हैं, जो उनके प्रशंसकों के लिए एक ट्रीट है।
फिल्म की खूबियाँ और कमियाँ
खूबियाँ
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पवन कल्याण की स्क्रीन प्रेजेंस: उनकी ऊर्जा और स्टारडम फिल्म को कई जगहों पर संभालते हैं।
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एक्शन सीक्वेंस: पहले हाफ का कुश्ती दृश्य और प्री-क्लाइमेक्स एक्शन फिल्म के हाइलाइट्स हैं।
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एम. एम. कीरावनी का बैकग्राउंड स्कोर: यह कहानी को भावनात्मक और रोमांचक बनाता है।
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ऐतिहासिक और काल्पनिक मिश्रण: कहानी में धर्म और स्वतंत्रता के लिए संघर्ष का विचार आकर्षक है।
कमियाँ
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कमजोर लेखन: कहानी का बिखराव और टोनल असंगति दर्शकों को जोड़ने में असफल रहती है।
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खराब वीएफएक्स: दृश्य प्रभाव इतने कमजोर हैं कि वे फिल्म के भव्य विजन को कमजोर करते हैं।
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असंगत निर्देशन: दो निर्देशकों की शैली का टकराव फिल्म की एकरूपता को नुकसान पहुँचाता है।
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कमजोर सहायक किरदार: कई अनुभवी अभिनेताओं को सही स्क्रीन टाइम और गहराई नहीं मिली।
दर्शकों के लिए प्रासंगिकता और सामाजिक प्रभाव
फिल्म की थीम, जो संनातन धर्म और जजिया कर जैसे ऐतिहासिक मुद्दों पर आधारित है, वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक माहौल से गहराई से जुड़ी है। पवन कल्याण की छवि एक जन सेवक और धर्म के रक्षक के रूप में फिल्म में साफ झलकती है, जो उनके प्रशंसकों के लिए एक बड़ा आकर्षण है। लेकिन फिल्म की कहानी में भावनात्मक गहराई की कमी इसे एक व्यापक दर्शक वर्ग तक पहुँचने से रोकती है।
फिल्म का प्रयास ऐतिहासिक क्रूरताओं, जैसे जजिया कर, को उजागर करना सराहनीय है, लेकिन इसका निष्पादन इसे एक प्रचार जैसा अनुभव बनाता है। यह उन दर्शकों को आकर्षित कर सकती है जो पवन कल्याण की स्टार पावर और ऐक्शन से भरी कहानियों को पसंद करते हैं, लेकिन जो लोग गहरी कहानी और प्रामाणिक ऐतिहासिक चित्रण की उम्मीद करते हैं, वे निराश हो सकते हैं।
बॉक्स ऑफिस और भविष्य की संभावनाएँ
फिल्म को इसके रिलीज के पहले सप्ताह में पवन कल्याण की लोकप्रियता के कारण अच्छी शुरुआत मिली, लेकिन मिश्रित समीक्षाओं और कमजोर वीएफएक्स के कारण इसका बॉक्स ऑफिस प्रदर्शन पहले वीकेंड के बाद कमजोर पड़ सकता है। फिल्म को तेलुगु के साथ-साथ हिंदी, तमिल, कन्नड़, और मलयालम में भी रिलीज किया गया है, जिससे इसका दर्शक वर्ग बढ़ा है। अमेजन प्राइम वीडियो ने इसके पोस्ट-थियेट्रिकल स्ट्रीमिंग राइट्स हासिल किए हैं, जो इसे और व्यापक दर्शकों तक पहुँचाएगा।
लेकिन अगर हरि हर वीर मल्लु: पार्ट 2 बनती है, तो इसे और मजबूत लेखन, बेहतर वीएफएक्स, और एक सुसंगत कहानी की जरूरत होगी। पहले भाग की कमियाँ इसे एक अधूरी शुरुआत बनाती हैं, जिसे दूसरा भाग संभाल सकता है, बशर्ते निर्माता सही दिशा में काम करें।
निष्कर्ष
हरि हर वीर मल्लु: पार्ट 1 – स्वॉर्ड वर्सेज स्पिरिट एक महत्वाकांक्षी फिल्म है, जो अपने भव्य विजन और पवन कल्याण की स्टार पावर के साथ शुरुआत करती है। लेकिन कमजोर लेखन, खराब दृश्य प्रभाव, और असंगत निर्देशन इसे एक मिश्रित अनुभव बनाते हैं। यह फिल्म पवन कल्याण के प्रशंसकों के लिए एक मजेदार सवारी हो सकती है, लेकिन जो लोग गहरी कहानी और प्रामाणिक ऐतिहासिक ड्रामा की उम्मीद करते हैं, उनके लिए यह निराशाजनक हो सकती है।
अगर आप एक एक्शन से भरपूर, पवन कल्याण की स्टारडम से सजी फिल्म देखना चाहते हैं, तो यह आपके लिए है। लेकिन अगर आप एक सुसंगत और भावनात्मक रूप से गहरी कहानी की तलाश में हैं, तो शायद आपको दूसरी ओर देखना चाहिए।
रेटिंग: 2.5/5
कहाँ देखें: सिनेमाघरों में (24 जुलाई 2025 से) और बाद में अमेजन प्राइम वीडियो पर।